कविता: “पापा चलो कश्मीर चलें”
(एक बच्चे की आवाज़ में, जिसने अपने पिता को २०२५ के पहलगांव के आतंकी हमले में खोया)
बचपन से सुना है,
धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है… यहीं है।
पापा का बर्थडे आया,
तो मन ललचाया –
“पापा चलो कश्मीर चलें,
ख़ूब बर्फ़ उछालेंगे,
पहाड़ों की मैग्गी खाएंगे,
और ढेरों फ़ोटो खिंचवाएंगे।”
पर नहीं पता था…
नहीं पता था –
ये धरती का स्वर्ग,
मेरे पापा को स्वर्गवासी बना देगा…
हम सभी को शोक में डुबा देगा…
और मेरी मम्मी को ज़िन्दगी भर के लिए रुला देगा।
मेरे स्कूल ने मुझे गायत्री मंत्र सिखाया,
काश! कलमा भी पढाया होता,
काश! कलमा भी पढाया होता,
तो,
मेरे पापा का हाथ आज भी मेरे हाथ में होता।
क्यों बढ़ाते हैं लोग भेदभाव?
क्यों लगाते हैं हिंदू-मुसलमान की आग?
गोलियां चलाकर जाने क्या मिला उन्हें…
जाने क्या मिला उन्हें…
पर हमारी तो रुक गई सांसों की धुनें।
हे भगवान…!
तुम अल्लाह के साथ एक डील साइन कर लो,
एक डील साइन कर लो, कि
अगली बार किसी बच्चे से,
उसका पापा ना लो…
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