मोदी रोजगार दो अभियान हिंदी निबंध

एसएससी की असफलता से मजबूर होकर ssc विद्यार्थियों ने 25 फ़रवरी 2021 को ६ मिलियन से भी ज्यादा ट्वीट किये जिसे ‘मोदी रोजगार दो अभियान’ के नाम से पुकारा गया। विद्यार्थियों का कहना है कि सरकार केवल भाषणों में शिक्षा को बढ़ावा देती है असलियत में भारतीय सरकार विद्यार्थियों की दुर्दशा पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। पहले भी विद्यार्थियों ने प्रधान मंत्री मोदी के जन्मदिवस १७ सितम्बर को बेरोज़गारी दिवस के रूप में मनाकर अपना रोष प्रकट किया था। ‘Modi Rojgar do’ हिंदी निबंध के माध्यम से एसएससी और छात्रों के बिगड़ते सम्बन्ध आपके सामने प्रस्तुत हैं –

मोदी रोजगार दो अभियान हिंदी निबंध | SSC की कमियाँ और विद्यार्थियों का विरोध

एसएससी (SSC)क्या है

इसकी फुल फॉर्म है स्टाफ सिलेक्शन कमिटी (Staff Selection Committee), यह संगठन भारत में कर्मचारी आयोग की भर्तियां करता है। जिस प्रकार यूपीएससी परीक्षाओं के द्वारा आईएएस ऑफिसर या अधिकारिक स्तर पर परीक्षार्थियों की नियुक्ति की जाती है उसी प्रकार एसएससी छोटे स्तर की भर्तियों के लिए परीक्षाएं करवाता है। उसमें से चुने हुए विद्यार्थियों को प्रशासनिक विभाग में कर्मचारी स्तर की सरकारी नौकरियां दी जाती हैं।

एसएससी चर्चा में क्यों

परीक्षाओं में विलम्ब होने के कारण कैंडिडेट्स को एक डेढ़ साल में ख़त्म होने वाले कोर्स में कई-कई साल लग जाते हैं। और बिना कमाई के घर पर बैठकर खाना स्टूडेंट्स के लिए बहुत ही भारी हो जाता है। नौकरी के लिए बढ़ते सामाजिक और घरेलू तानों से परेशान होकर बच्चे मायूस और उदास हो जाते हैं। इन्ही कारणों के चलते सभी अभ्यार्थी और कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट के अध्यापकों ने मिलकर सोशल मीडिया पर सरकार का विरोध करने के लिए ‘मोदी रोज़गार दो अभियान’ की शुरुआत की। इस अभियान के द्वारा विद्यार्थी प्रधानमंत्री से नौकरी की मांग कर रहे थे। पिछले कुछ सालों से कर्मचारी आयोग और विद्यार्थियों के बीच विरोधाभास चल रहा है, विरोधाभास के कारण निम्नलिखित हैं। कर्मचारी आयोग में बहुत सी कमियां बताई जाती है जिनमें विद्यार्थी बदलाव की मांग कर रहे हैं ।

SSC की कमियाँ

1 देरी से परीक्षा परिणाम घोषित करना
सूत्रों के अनुसार 2018 में कराई गई परीक्षाओं का परिणाम फरवरी 2021 में घोषित किया गया है। इससे यह परेशानी होती है कि बच्चे लगातार कई सालों तक परीक्षाओं में बैठते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं चलता कि वे पहली परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुके है या नहीं । उदाहरण के लिए- एक अभ्यार्थी ने 2017 में पेपर दिया लेकिन उसका रिजल्ट आने से पहले ही 2018 की परीक्षा गठित करा दी गई| वह 2018 की परीक्षा में फिर से बैठता है। लेकिन उसका भी रिजल्ट नहीं आता तो इसलिए 2019 की परीक्षा में भी बैठ जाता है। इस प्रकार छात्रों की उम्र निकलती जाती है और वे परीक्षा परिणाम का ही इंतजार करते रह जाते हैं और उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती।

2. जानबूझकर गलत सवाल छापना
पिछले कुछ सालों से कर्मचारी आयोग की आदत सी बन गई है कि पेपर में 5 या 6 प्रश्न जानबूझकर गलत छाप दिए जाते हैं और बाद में यह कह दिया जाता है कि जो सवाल गलत थे सभी विद्यार्थियों को उनके पूरे नंबर दे दिए जाएंगे । लेकिन कर्मचारी आयोग ने इस बात का अंदाजा नहीं लगाया कि उस गलत सवाल को हल करने के लिए कैंडिडेट ने परीक्षा के दौरान आधा घंटा ख़राब कर दिया जबकि वह प्रश्न ठीक होता तो केवल 5 ही मिनट लगते।

3. गलत सवाल की रिपोर्ट करवाने के लिए स्टूडेंट से पैसे लेना
एसएससी की परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले अध्यापकों का यह आरोप है कि यह गलत सवाल आयोग द्वारा जानबूझकर छापे जाते हैं क्योंकि गलत सवाल के खिलाफ कार्यवाही करने वाले व्यक्ति को ₹100 प्रति सवाल जमा करवाना होता है। इस प्रकार हर विद्यार्थी उस गलत सवाल की अपील करता है तो एसएससी खूब पैसा इकट्ठा कर लेती है। इस लिहाज से तो यह पैसा छापने की मशीन हो गई ।

4. वैकेंसी में निरंतर गिरावट आना
साल दर साल कर्मचारी आयोग सरकारी वैकेंसी (Vacancy) में कमी करता जा रहा है । इसके विपरीत जनसंख्या वृद्धि के साथ तो खाली सीटों की संख्या बढ़नी चाहिए। इसी वजह से देश में पढ़े लिखे युवा बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। जो गरीब छात्र-छात्राओं को आत्म-दाह और आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर करते हैं ।

5. नॉर्मलाइजेशन सही नहीं
विद्यार्थियों का आरोप है कि नॉर्मलाइजेशन तो रिजर्वेशन से भी ज्यादा खतरनाक है। एसएससी का पेपर एक ही दिन में ना होकर तीन अलग-अलग शिफ्ट में लिया जाता है। तीनों ही दिन के लिए अलग-अलग प्रश्नपत्र होता है। इससे किसी प्रश्न पत्र का लेवल आसान होता है तो किसी का मुश्किल। एक स्तर पर चेकिंग करने की चाह में एस एस सी ने नॉर्मलाइजेशन की तकनीक अपनाई। जिसके तहत तीनों दिन की गई परीक्षाओं का अलग-अलग औसत निकाला जाता है और उसके बाद तीनों का एक कंबाइंड औसत निकाला जाता है ।
जिससे जिन अभ्यार्थियों ने आसान परीक्षा पत्र होने की वजह से ज्यादा अंक पायें है उनके नंबर कम कर दिए जाते हैं और जिन्होंने मुश्किल प्रश्न पत्र होने की वजह से कम नंबर पाए थे उनके नंबर बढ़ा दिए जाते हैं। इससे यह परेशानी होती है कि कई बार ज्यादा अंक पाने पाने वालों के नंबर औसत की प्रक्रिया के दौरान इतने ज्यादा काट दिए जाते हैं कि वे पेपर क्वालीफाई भी नहीं कर पाते और जो विद्यार्थी पहले फेल थे उनके नंबर उम्मीद से ज्यादा बढ़ा दिए जाते हैं ।

इन सभी परेशानियों से तंग आकर विद्यार्थियों ने फ़रवरी 2021 में ट्विटर पर अभियान शुरू किया -‘मोदी रोजगार दो’। इस अभियान के पीछे ssc कैंडिडेट्स और अध्यापकों की निमंलिखित मांगें हैं:

  • एसएससी का पुनर्गठन किया जाना चाहिए, इसमें ऐसे लोगों को शामिल किया जाए जो सही तरीके से काबिल हों।
  • परीक्षा एक ही दिन में ली जानी चाहिए और एक ही तरीके का प्रश्न पत्र सभी विद्यार्थियों को दिया जाना चाहिए जिससे नॉर्मलाइजेशन पर रोक लग पाएगी।
  • इसके अलावा जिस प्रकार मेडिकल, इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम में कोई प्रश्न गलत छप कर नहीं आता एसएससी को भी उसी स्तर का काम करना चाहिए ।
  • टियर 2 की परीक्षा होने से पहले पहले टियर 1 का परिणाम हर हालत में घोषित कर दिया जाना चाहिए।

किसी देश के बच्चे उस देश का भविष्य तय करते हैं लेकिन किसी अभ्यार्थी को परीक्षा के नतीजों के लिए तीन साल इंतज़ार करना पड़ेगा तो देश का युवा हतोत्साहित हो जाएगा, जिसके भयावह परिणाम हो सकते हैं । यदि भारत जैसे विशाल देश में 1 ही दिन में 55 करोड़ लोग एक साथ मतदान कर सकते हैं तो 3 करोड़ एसएससी स्टूडेंट्स का पापर एक ही दिन में क्यों नहीं लिया जा सकता।

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