आज की हिन्दी स्टोरी में व्यंग्य के साथ एक शिक्षा भी छुपी है। लेख को समझने के लिए अंत तक पढ़ें। क्या आपने कभी सोचा कि साथ के घर में काम करने वाले मजदूर का बच्चा डरा – डरा सा क्यों दिखता है। ये बच्चे हमेशा गली में ही क्यों खेलते रहते हैं।
गरीब व्यक्ति को अच्छी शिक्षा क्यों नहीं मिलती? क्यों ये लोग शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पाते? क्यों ये गरीब पैदा होकर गरीबी में ही मर जाते हैं? क्या सम्पन्न और सभ्य लोगों का इनके प्रति कोई कर्तव्य नहीं है?
इस Hindi Story के माध्यम से हम अपनी वास्तविक ज़िंदगी की घटनाओं को हिन्दी कहानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं। हमारी कोशिश है कि हमारी real life hindi story से आपको कोई नैतिक शिक्षा भी मिले।
Real Life Story in Hindi | Hindi Story of a House Maid | Garibi ka Dukh |
गरीबी का दुख
रसोई के काम में मदद करने के लिए मैंने एक नई कामवाली को रखा, जो बर्तन साफ करती थी और रसोई में सब्ज़ी आदि काटने में भी मदद करती थी। वह 19 साल की एक लड़की थी जिसका नाम था रीमा। रीमा ने कभी इस तरीके से घर से बाहर निकल कर काम नहीं किया था। वह पहली बार ही काम करने के लिए अपने घर से बाहर निकली थी। काम करना उसका शौंक नहीं मजबूरी थी। जैसा कि ज्यादातर गरीब लोगों के साथ होता है। क्योंकि उसके दो बड़े भाई सब्जी का ठेला लगाते हैं उसकी मां किसी फैक्ट्री में काम करती है और उसके पिता सारा दिन दारू पीकर पैसा बर्बाद करता है।
इसलिए उसे अपनी B.A. की पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए घरों में बर्तन साफ करने का काम करना पड़ा। उसे पढ़ने का बहुत शौक है। पर मेरा ऐसा मानना है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। यदि किसी काम को करके आप दो पैसे जोड़ लें और अपने ऊपर खर्च कर सके तो अच्छी बात है। उस लड़की ने मेरे घर में काम करना शुरू दिया। 5 दिन ही बीते थे, एक दिन मैंने उसे सीढ़ियों में पोछा लगाने के लिए कहा, अचानक से उसके चिल्लाने की आवाज आई। एक ही पल में ही दिमाग में कई विचार घूम गए । किसी ड्राइवर या नौकर ने छेड़ तो नहीं दिया, गिर तो नहीं गई, छिपकली तो नहीं देख ली, पता नहीं क्या हुआ। मैं दौड़ी -दौड़ी गई, “क्या हुआ रीमा”?
मैंने पूछा, “क्या हुआ रीमा, छिपकली आ गई क्या?” उसने कहा नहीं भाभी। तो फिर क्या हुआ? कुछ नहीं कहकर वह ऊपर आ गई। 10 मिनट बाद मैंने उससे फिर पूछा कि क्या हुआ था। तो वह बड़े हिचकते हुए बोली कि नीचे वाली मंजिल पर जो आंटी रहती हैं उन्हें देखकर मुझे बड़ा डर लगता है। “डरने की क्या बात है?” उसने कहा कि उनकी शक्ल थोड़ी अजीब है। अच्छा, तो आज क्या हुआ? जब मैं सीढ़ियों में पोछा लगा रही थी, नीचे वाली मंजिल का दरवाजा खुला था। वहां पर बिल्कुल अंधेरा था, केवल एक छोटा सा दिया ही जल रहा था। जिसकी रोशनी दिखाई दे रही थी, और जैसे ही मैंने उस तरफ मुंह किया उस दिये के सामने एक भयानक सा चेहरा या गया। जिसे देखकर मैं एकदम से डर गई और चिल्लाई और फिर मैं ऊपर की तरफ भागी।
बर्तन मांजते हुए उसने मुझसे पुछा – भाभी, ये जो नीचे रहती हैं, क्या ये जादू टोना करती हैं? मुझे बहुत जोर से हंसी आई। अरे नहीं कैसी बात करती हो! वह तो ऐसे ही अकेली रहती है और गर्मी ना लगे इसलिए लाइट बंद करके बैठी रहती हैं। शायद पूजा-पाठ कर रही होंगी। डरने की कोई बात नहीं है, तुम आराम से अपना काम किया करो, वह तुम्हें कुछ नहीं कहेंगी।
उसने मुझसे कहा कि भाभी मुझे उनसे बहुत डर लगता है। कहीं यह मुझे पकड़ तो नहीं लेंगी। तो मैंने उसे आश्वासन दिया कि ऐसा कुछ नहीं है। तुम आराम से आया करो और आराम से जाया करो। यह सब अंध विश्वास और डर शिक्षा की कमी के कारण है। यह कहकर मैंने उसे ठंडा पानी दिया । उसके बाद उसे दो केले भी दिये। खा कर उसे थोड़ा अच्छा लगा और वह थोड़ी आश्वस्त हो गई कि अब उसे भूत जैसी दिखने वाली आंटी से कोई डर नहीं है। फिर वह अपने घर चली गई।
उसने थोड़ी हिम्मत बटोर कर कहा, ” भाभी आप बहुत अच्छे हो, क्या आप मुझे इंग्लिश पढ़ाओगी”? मैंने कहा, ” नहीं, मेरे पास तो बिल्कुल टाइम नहीं है”। यह सुनकर उसका मुँह उतर गया। “अच्छा, चलो ठीक है, शाम को अपनी कॉपी और किताब ले आना। थैंक्यू भाभी कहकर वह चली गयी।
उसी वक्त मुझे याद आया कि किस तरह कपड़े धोने वाली मद्रासन भी अपनी गरीबी से परेशान होकर अक्सर कहती है – काश! मुझे भी भगवान किसी कोठी वाली के पेट में डाल देता। रीमा के जाने के बाद मैं यह सोच रही थी किसी गरीब परिवार में जन्म लेना एक अभिशाप की तरह है। जहां पढ़ाई की उम्र में बच्चों को जगह-जगह जाकर काम करना पड़ता है। अपने जीवन यापन के साथ अपनी पढ़ाई भी करना असंभव सा लगता है। पूरा दिन घरों में काम-काज करके थक हार कर घर जाती है । उसके बाद सभी घर वालों का खाना बनाती है, और रात को बैठकर पढ़ती भी है।
सरकार के बहुत कुछ फ्री उपलब्ध करवाने के बावजूद भी भारत में इतनी गरीबी क्यों है। अमीर और गरीब के बीच की खाई का फर्क बहुत बड़ा है। अमीरों के घर में हर रोज़ बची हुई सब्ज़ी फेंकी जाती है और गरीब को दिन में एक सब्ज़ी भी मिल जाए तो बड़ी बात है। मुझे ऐसा लगता है कि शिक्षा ही इस गहरी खाई को भर सकती है। लेकिन सरकारी स्कूलों में मिलने वाली मुफ़्त शिक्षा का स्टैन्डर्ड इतना कम है कि ये बच्चे प्राइवेट स्कूल के विद्यार्थियों का मुकाबला ही नहीं कर सकते।
अब आप कहेंगे कि इसमे कोई क्या कर सकता है। गलत। आप कर सकते हैं। अगर ज़्यादा नहीं तो केवल अपने घर में काम करने वाले घरेलू नौकरों के बच्चों को पढ़ाकर हर घर बहुत बड़ा फर्क ला सकता है।
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